आखिर क्यों बढ़ रही है उत्तर प्रदेश में पत्रकारों के उत्पीड़न की वारदातें, जाने......




रसड़ा (बलिया ): उत्तर प्रदेश में  एक के बाद एक कर पत्रकारों को जेल की सलाखों में डालने सहित हत्या कर दी जाती है। चौथे स्तंभ कहे जाने वाली मीडिया पर जिस तरह से हमलावर हो रही है यूपी की पुलिस,इससे क्या अंदाजा लगाया जाये,कि यूपी पुलिस खाकी वाले गुंडे का तगमा लेने पर आमादा है। गाजियाबाद में पत्रकार विक्रम जोशी की हत्या फेल हो रही पुलिसिया सिस्टम की तरफ इशारा कर रही है। 

 मेरा सरकार और जिम्मेदार साहेब से सिर्फ दो सवाल है-गाजियाबाद में पत्रकार विक्रम जोशी प्रकरण में जब अपराधियों को गिरफ्तार किया गया तो उनका एनकाउंटर क्यों नहीं किया गया ? यदि पत्रकार की जगह किसी पुलिस वाले की हत्या की गयी होती तो आप क्या करते? एक के बाद एक कलमकारों की जुबां बंद करने के लिये पत्रकारों पर पुलिसिया अत्याचार हो रहा है,इस पर रोक क्यों नहीं लगायी जा रही है ? यदि पत्रकार हमलावर हो गया तो साहेब ,आपके वर्दीधारियों को यूपी में छिपने की जगह नहीं मिलेगी…। 

सीधी बात करें तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी का ही बयान है कि अब यूपी में अपराधियों के लिये कोई जगह नहीं है। सुधर जाये वर्ना यूपी छोडक़र भाग जाये…। पुलिस का यही रवैया रहा तो आने वाला समय बहुत ही भयावह हो सकता है…। जिस तरह से पुलिस पत्रकारों पर हमलावर हो रही है,यदि अपराधियों पर हो जाये तो सही कहा जाये ये लोग यूपी छोडक़र भागेंगे ही।
गाजियाबाद में 20 जुलाई की रात पत्रकार विक्रम जोशी के ऊपर जो हमला हुआ बहुत ही निंदनीय है। विक्रम जोशी का कसूर सिर्फ इतना था कि उन्होंने कुछ अपराधियों के खिलाफ विजयनगर थाने में एफ आईआर दर्ज करायी थी, जो उनकी भांजी को आये दिन छेड़ते रहते थे। लेकिन, पुलिस ने अपराधियों के ऊपर कोई कार्यवाही नहीं की। 

पुलिस तब जागती हैं जब विक्रम जोशी के ऊपर जानलेवा हमला हो जाता है। आपको पता होगा कि विक्रम जोशी 20 जुलाई की रात अपनी दो मासूम बेटियों के साथ जा रहे थे उसी वक्त उनके ऊपर हमला किया जाता है, और उनके सिर में गोली मार दी जाती है। जरा सोचिये, जो बेटी अपने पिता के साथ इस तरह का मंजर देखा होगा,आखिर उनके जीवन पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा…। बेटियां बिलखती हुयी अपने घर जाती हैं,उसके बाद विक्रम जोशी को एक अस्पताल में भर्ती कराया जाता है। जहां  22 जुलाई को विक्रम जोशी की उपचार के दौरान मौत हो जाती हैं। सवाल यह उठता है कि आखिर इस मौत का जिम्मेदार कौन है ?

विक्रम की हत्या के इस सनसनीखेज मामले के लिये जितने जिम्मेदार हत्यारे हैं, उतनी ही जिम्मेदार पुलिस भी है। कई बार शिकायत करने के बावजूद भी स्थानीय पुलिस ने विक्रम और उसकी बहन की शिकायत पर कार्रवाई तो नहीं की बल्कि यह जरूर हुआ, जिन बदमाशों की शिकायत वह कर रहे थे उन्हें यह पता चल गया कि उनके खिलाफ थाने में विक्रम ने शिकायत की है.

यहीं से कहानी ने दुश्मनी का रूप ले लिया। पुलिस तो उन अपराधियों के खिलाफ कुछ नहीं कर सकी, लेकिन उन बदमाशों ने दो मासूम बेटियों के सामने उनके पिता के सिर मे गोली मार दी उसके बाद विक्रम जोशी ने दम तोड़ दिया। कितने शर्म की बात है कि चौथा स्तंभ कहा जाने वाला एक पत्रकार के इतने प्रयास के बाद भी पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की क्या उत्तर प्रदेश में कार्रवाई तब होगी जब किसी को अपनी जान गवानी पड़ेगी।
हालांकि एसएसपी, गाजियाबाद कलानिधि नैथानी ने चौकी इंचार्ज को सस्पेंड कर दिया है ,जो थोड़े दिन के बाद फिर से बहाल हो जायेगा।

 इतनी बड़ी घटना में एक चौकी इंचार्ज को सस्पेंड कर देना कोई हल नहीं है। इसमें जो भी दोषी पुलिस अधिकारी हों उनको बर्खास्त किया जाये और उनके खिलाफ भी सख्त कार्यवाही भी की जाये, जिससे ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति ना हो।
इसे दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि जिस राम राज्य की स्थापना करना चाहतीं भाजपा अपराधमुक्त यूपी का नारा देकर सत्ता में आयी,उसी सरकार में चौथे स्तम्भ पर खाकी कहर बरपाने पर आमादा हो गयी है, जो चिंता का विषय है। 

बता दें कि 19 जून 2020 को उन्नाव में दिनदहाड़े तीन गोलियां मारकर पत्रकार शुभममणि त्रिपाठी की हत्या कर दी जाती है। शुभम का कसूर सिर्फ इतना था कि उन्होंने भूमाफिया और रेत माफियाओं की काली करतूतों को उजागर किया था। इसी तरह, अक्टूबर 2019 में कुशीनगर के हाटा कोतवाली में एक पत्रकार राधेश्याम शर्मा की गला रेत कर हत्या कर दी जाती है। अगस्त 2019 में सहारनपुर में पत्रकार व उनके बड़े भाई की गोली मारकर हत्या कर दी जाती है।
आखिर साहब कलमकारों पर हमले कब तक होते रहेंगे? इसके लिए कौन जिम्मेदार है? ।

 आखिर में एक ही बात कहनी है कि जब कोई अपराधी खाकी का रंग लाल करता है तो नियम-कानून की धज्जियां उड़ाते हुये पुलिस वाले एनकाउंटर कर देते हैं,फिर ये तो कलमकार यानि चौथे स्तम्भ की हत्या है,दोषियों का उनकाउंटर क्यों नहीं किया जा सकता....।

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