डिज्नी+ हॉटस्टार पर रिलीज हुई है वेब सीरीज ‘नवंबर स्टोरी’.
‘नवंबर स्टोरी’ एक सस्पेंस थ्रिलर है. कहानी क्राइम लेखक गणेशन (जीएम कुमार) की है, जो कि अल्ज़ाइमर्स से पीड़ित हैं.
क्या वजह है कि हम एक अच्छी सस्पेंस थ्रिलर स्टोरी नहीं बना पाते? या तो हम मूल कथानक में इतने खो जाते हैं कि कहानी में वज़न पैदा करना भूल जाते हैं या फिर हम सब-प्लॉट्स को इतना महत्व दे देते हैं कि मूल कहानी कहीं पीछे छूट जाती है? या फिर हम कहानी के सस्पेंस तो इतने देर तक छुपाये रखते हैं कि लोगों का धैर्य जवाब देने लगता है. डिज्नी+ हॉटस्टार पर रिलीज हुई वेब सीरीज ‘नवंबर स्टोरी’ में तीनों बातें इस थ्रिलर को पटरी से उतार देते हैं. वेब सीरीज: नवंबर स्टोरी सीजन: 1 सीजन (7 एपिसोड) ओटीटी: डिज्नी+ हॉटस्टार‘नवंबर स्टोरी’ एक सस्पेंस थ्रिलर है. कहानी क्राइम लेखक गणेशन (जीएम कुमार) की है, जो कि अल्ज़ाइमर्स से पीड़ित हैं. उम्र के इस पड़ाव में भी वो एक किताब लिख रहे हैं और बार-बार एक अदृश्य शख्स कुलंधाई येसु (पशुपति एम) से बात करते हुए नज़र आते हैं. गणेशन की पुत्री हैं अनुराधा (तमन्ना भाटिया) जो कि कंप्यूटर एक्सपर्ट हैं और अपने मित्र मलार (विवेक प्रसन्ना) के साथ मिलकर पुलिस रिकॉर्ड्स को कम्प्यूटरीकृत करने का काम करती हैं. एक दिन पुलिस के कंप्यूटर पर हैकिंग होती है और एक ख़ास तारीख के सारे एफआईआर रिकॉर्ड्स गायब हो जाते हैं. इसी दौरान, अनु के पुराने घर में एक औरत की हत्या हो जाती है. खबर लगने पर अनु जब अपने पुराने घर पहुंचती है तो लाश के पास अल्ज़ाइमर के दौरे से परेशान गणेशन वहां बैठे हुए हैं और खून का इलज़ाम उन पर आएगा, इसके पूरे आसार नज़र आते हैं. यहां तक कहानी में लगता है कि अनु को इस हैकिंग और मर्डर के पीछे के राज़ जानने में उनके पिता की लेखनी मदद करेगी और वेब सीरीज में रफ़्तार आएगी. होता इसका ठीक उल्टा है. वेब सीरीज की रफ़्तार इतनी धीमे हो जाती है कि 5वें एपिसोड तक तो समझ ही नहीं आता है कि हो क्या रहा है और ये सब किरदार क्या पता लगाना चाहते हैं. खैर जैसे तैसे आखिरी एपिसोड में आते आते मामला हल होता है, गणेशन और येसु दोनों की मौत हो जाती है, और वेब सीरीज ख़त्म हो जाती है. जिस तरह ख़त्म हुई है, लगता नहीं है कि अगला सीजन आएगा. इस रफ़्तार का बनेगा तो दूसरा नहीं ही बनाना चाहिए. सस्पेंस थ्रिलर में बैक स्टोरी का बड़ा महत्त्व होता है. वो किस तरह से होने वाले अपराध से जुड़ी है, ऐसे कौन से सबूत या संकेत होते हैं जो मुख्य किरदार पता लगा कर उस सस्पेंस को सॉल्व करता है और फिर सारे सूत्र एक जगह आ कर मिलते हैं और एक बड़े से राज़ से पर्दा फाश होता है. नवंबर स्टोरी में भी बैक स्टोरी कन्फ्यूजिंग है. पुलिस केस में पुलिस खुद महा कन्फ्यूज़ होती रहती है. सबसे अहम् सूत्र का पता एक फोटोग्राफ को देख कर लगता है जो कि अनु पिछले कई सालों से अपने घर में देख रही होती है. कुलंधाई येसु का किरदार सबसे अच्छे से लिखा गया है. गणेशन का रोल भी अच्छे से उभरा है मगर अनु का किरदार कमज़ोर है. शुरू के 4 एपिसोड में तो स्क्रीन पर हैकिंग की और एक मर्डर की कहानी चलती रहती है और दोनों ही घटनाओं से दर्शकों को किसी प्रकार का कोई भावनात्मक सम्बन्ध स्थापित ही नहीं होता. कहानी सीरियस है तो थोड़ा हास्य का पुट डालने के लिए एक मूर्ख किस्म का हवलदार भी है जो मर्डर की छान बीन में कुछ भी नहीं जोड़ता मगर दर्शकों को बोर ज़रूर करता है. जांच अधिकारी की भूमिका में अरुलदास ने अच्छा काम किया है. इस वेब सीरीज की प्रोडक्शन बहुत अच्छी है. विधु अय्यन की सिनेमेटोग्राफी काफी प्रभावी है. कुलंधाई येसु के बचपन और जवानी के सीन्स सेपिया टोन में रखे गए हैं और उनकी रफ़्तार भी पूरी सीरीज से अलग है. हर एपिसोड की शुरुआत में येसु के सीन अच्छा प्रभाव डालते हैं. सीरीज में एक खास किस्म का तनाव बना के रखा गया है जो शायद कहानी की डिमांड थी मगर ये तनाव, जल्द ही सरदर्द में बदल जाता है. कहानी और निर्देशन इंद्रा सुब्रमण्यम का है जो कि काबिल-ए-तारीफ तो नहीं है मगर ये उनकी पहली वेब सीरीज है, उसको देखते हुए उनकी कला की परिपक्वता को सराहना की जा सकती है. हालांकि जिस सस्पेंस की रक्षा करने के लिए उन्होंने 4 एपिसोड खर्च कर दिए, वहां कुछ समय बचा कर, सीरीज को रफ़्तार और किरदारों को नए आयाम दिए जा सकते थे.. एक बार पहली परत खुलती है तो पूरा रहस्य समझा जा सकता है. माती (नमिता कृष्णमूर्ति) के किरदार का जस्टिफिकेशन ढूंढने बहुत समय जाया किया गया है और कहानी का केंद्र होने के बावजूद, इस को सही तरीके से नहीं दिखाया गया है.
तमन्ना भाटिया को इसी वेब सीरीज से डेब्यू क्यों करना था विचार करने का विषय है. संगीत प्रेमचंद कंचरिया का है और डायलॉग्स पर भी भारी है. कई जगह सिर्फ म्यूजिक की वजह से कहानी से जुड़ाव नहीं हो पाता. ऐसी धारणा है कि तमिल फिल्मों में डायलॉग बहुत होते हैं क्योंकि लोग वाचाल होते हैं, लेकिन एक मर्डर मिस्ट्री में इतनी बातचीत रखना पूरे एपिसोड का मज़ा किरकिरा कर देती है. अगर स्क्रीन पर होने वाली हर बात को समझाने के लिए डायलॉग पर निर्भर नहीं रहना होता तो शायद वेब सीरीज कुल जमा 4 एपिसोड में ख़त्म हो जाती और एकदम कसी हुई लगती. नवंबर स्टोरी में नवंबर आते आते बहुत समय लगता है. देखने वाले बोर हो जाते हैं. डिज्नी+हॉटस्टार को इसे फिर से एडिट कर के, डबिंग ठीक करवा के, बेहतर बैकग्राउंड म्यूजिक के साथ प्रस्तुत करना चाहिए, वरना ये वेब सीरीज कहीं खो जाएगी.
तमन्ना भाटिया को इसी वेब सीरीज से डेब्यू क्यों करना था विचार करने का विषय है. संगीत प्रेमचंद कंचरिया का है और डायलॉग्स पर भी भारी है. कई जगह सिर्फ म्यूजिक की वजह से कहानी से जुड़ाव नहीं हो पाता. ऐसी धारणा है कि तमिल फिल्मों में डायलॉग बहुत होते हैं क्योंकि लोग वाचाल होते हैं, लेकिन एक मर्डर मिस्ट्री में इतनी बातचीत रखना पूरे एपिसोड का मज़ा किरकिरा कर देती है. अगर स्क्रीन पर होने वाली हर बात को समझाने के लिए डायलॉग पर निर्भर नहीं रहना होता तो शायद वेब सीरीज कुल जमा 4 एपिसोड में ख़त्म हो जाती और एकदम कसी हुई लगती. नवंबर स्टोरी में नवंबर आते आते बहुत समय लगता है. देखने वाले बोर हो जाते हैं. डिज्नी+हॉटस्टार को इसे फिर से एडिट कर के, डबिंग ठीक करवा के, बेहतर बैकग्राउंड म्यूजिक के साथ प्रस्तुत करना चाहिए, वरना ये वेब सीरीज कहीं खो जाएगी.