रिहाई के पीछे की कानूनी जटिलताएं
सिटापुर जेल की धुंधली सुबह में अज़ाम खान को आखिरकार आज़ादी मिली। पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री ने लगभग दो साल तक सजा काटी, लेकिन अलभेद हाई कोर्ट ने 18 सितंबर को क्वालिटी बार भूमि कब्जे के मामले में बैंल मंजूर कर दिया। इस बैंल के साथ ही कुल 72 मामलों में रिहाई आदेश जारी हुए, जिनमें 19 मामलों में सत्र कोर्ट ने पहले से ही बैंल दे रखा था।
कुल 72 केसों में बैंल मिलने की खबर पार्टी के अंदर बड़ी राहत बनकर आई। कई मामलों में अपील और पुनः सुनवाई की लंबी प्रक्रिया चल रही थी, पर अंततः न्यायालय ने सभी लंबित प्रॉसेसिंग को समाप्त करके रिहाई की राह आसान कर दी। कुछ पुराने फाइलों में दस्तावेज़ी औपचारिकता में देरी के कारण रिहाई में थोड़ा समय लगा, लेकिन अंततः सभी काग़ज़ात साफ हो गए।

रिलीज़ के बाद का माहौल और राजनीतिक असर
जेल के एक साइड गेट से काली वस्त्र पहने सुरक्षा दलों के बीच से बाहर निकलते ही अज़ाम खान को उनके बेटे अब्दुल्ला और अदीब ने स्वागत किया। पार्टी के हजारों कार्यकर्ता, राष्ट्रीय सचिव अनुप गुप्ता, मोरादाबाद की सांसद रूची वीरा और जिला अध्यक्ष चतरपति यादव सहित कई बड़े नेता शुरुआती सुबह से ही इंतजार में थे।
कुर्ता-पायजामा में काली वेस्टकोट पहने हुए नेता ने मीडिया से बात नहीं की, बल्कि निजी गाड़ी में सीधे अपने घर रम्पुर की ओर रवाना हुए। उनकी इस चुप्पी को कई सांसदों ने "रिपोर्टिंग से दूर रहने" के रूप में समझा, जबकि समर्थकों ने इसे "गंभीर सुरक्षा कारणों" के तहत उचित बताया।
रिलीज़ के समय सुरक्षा काफी कड़ी थी; कई जमीनी पुलिस कमांडरों को विशेष ड्यूटी पर रखा गया। कुछ पत्रकारों ने कहा कि अज़ाम खान के रहन-सहन और आने-जाने का तरीका दिखाने के लिए कई कैमरे लगे थे। पार्टी के भीतर यह भी चर्चा चल रही है कि इस रिहाई के बाद आगामी विधानसभा चुनाव में अज़ाम खान की भूमिका क्या होगी और क्या वे फिर से चुनावी मोर्चे पर लौटेंगे।
रिहाई के बाद अज़ाम खान ने अपने घर पहुंचते ही स्थानीय लोगों को बधाई दी और कहा कि वह अपने कानूनी मुद्दों को पूर्ण रूप से सुलझाने पर ध्यान देंगे। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि पार्टी के कामकाज और सामाजिक कार्यों में अपनी ऊर्जा फिर से लगानी है। यह कदम उनके समर्थकों के बीच उत्साह का कारण बना, जबकि विपक्षी पार्टियों ने इस रिहाई को "न्यायिक प्रक्रिया में खामियों" का संकेत बताया।